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Hindi

 प्रश्‍नपत्र– हिन्‍दी

हिन्‍दी तत्‍सम्‍बंधी नीति व प्रयोजनमूलक नीति एवं प्रयोजनमूलक हिन्‍दी

विषयवस्‍तु पाठ्यवस्‍तु को इस प्रकार अभिकल्पित व सूत्रबद्ध किया गया है ताकि परिवीक्षकों(प्रोबेशनरों) के हिन्‍दी ज्ञान की जॉंच की जा सके । उन्‍हें इस विषय पर इस तरह की निविष्टियॉं प्रदान की जाऍं जिसके द्वारा वे हिन्‍दी का अपेक्षित ज्ञान प्राप्‍त करने केसाथ केन्‍द्रीय उत्‍पाद शुल्‍क एवं सीमा शुल्‍क जैसे तकनीकी विषयों में भी हिन्‍दी का बिना झिझक के प्रयोग कर सकें ।

      भाषा के उद्देश्‍य:

जिन परिवीक्षकों को हिन्‍दी का पर्याप्‍त ज्ञान नहीं है एवं जिन्‍होंने हिन्‍दी का अध्‍ययन अपने शैक्षणिक काल के दौरान अथवा अन्‍यथा द्वितीय भाषा के रुप में किया है,उन्‍हें हिन्‍दी का ज्ञान इस प्रकार प्रदान करना है जिससे उनमें हिन्‍दी भाषा के चारों के कौशलों अर्थात् बोलना,सुनना,लिखना और पढ़ना का पर्याप्‍त विकास हो सके ।

  1.       जिन्‍हें हिन्‍दी की थोड़ी बहुत जानकारी है अथवा जिन्‍होंने हिन्‍दी का अध्‍ययन किसी भी स्‍तर तक प्रथम भाषा के रुप में किया है उन्‍हें इस भाषा का ज्ञान उस स्‍तर तक करवाना है ताकि वह सरलता एवं सुगमता के साथ सरकारी कामकाज,सुगम एवं सही भाषा का प्रयोग कर सकें ।
  2.        नीति: उद्देश्‍य-
    2.1    राजभाषा नीति तथा उसके विविध पहलुओं का प्रत्‍यक्षत: ज्ञान प्रदान करना ताकि वे समग्र रुप से नीति को आत्‍मसात करते हुए उन उपबन्‍धों से भलीभॉंति परिचित हो सकें जिनके अनुपालन की अपेक्षा उनके प्रतिदिन के सरकारी कामकाज में की जाती है ।
  3.      प्रयोजनमूलक हिन्‍दी:-
    3.1    प्रयोजनमूलक हिन्‍दी के विविध पक्षों को इस प्रकार उजागर करना ताकि वे मौखिक रुप से किए जाने वाले सरकारी कामकाज में जैसे बैठकों,सरकारी चर्चाओं,सम्‍मेलनों आदि में बेझिझक हिन्‍दी का प्रयोग कर सकें और लेखन सम्‍बंधी कार्य में भी हिन्‍दी का प्रयोग कर सकें ।
    3.2    प्रतिदिन के सरकारी कामकाज में हिन्‍दी का प्रयोग कर सकें एवं आवश्‍यकता होने पर केन्‍द्रीय उत्‍पाद शुल्‍क एवं सीमा शुल्‍क की कार्यविधियों एवं बारीकियों आदि की मौखिक व लिखित रुप से अभिव्‍यक्ति के लिए हिन्‍दी का प्रयोग करने में सक्षम हो सकें।      

(1)     हिन्‍दी भाषा अधिगम :                  

1.1    जो कुछ भी पहले सीखा गया है उसके मूल वाक्‍य सॉंचों के माध्‍यम से उसकी पुनरावृत्ति व अभ्‍यास । उनका पुनरीक्षण करवाते हुए उनके                    व्‍युत्‍पन्‍न वाक्‍य सॉंचों का अभ्‍यास।               
1.2   प्रकार्यपरक व्‍याकरण बिन्‍दु: विविध प्रकार के वाक्‍य सॉंचों का निर्माण जैसे हेतुबोधक सॉंचेअगर तोअगर जाओगे...............   तो करोगेतो                   करताअगर सकना,पाना,चुकना............. तो।                 
1.3    अकर्मक,सकर्मक क्रियाऍं,प्ररेणार्थक क्रियाऍं।               
1.4    वाच्‍य।             
1.5    क्रियार्थक संज्ञा,कृदंत(क्रियाविशेषण),कृदंत वर्तमान,भूतकालि‍क।                 
1.6    परिनिष्ठित शैली और बोलचाल की शैली की सामान्‍य अभिव्‍यक्ति तथा तकानीकी अभिव्‍यक्ति।             
1.7    संयुक्‍त क्रियाऍं,रंजक क्रियाऍं,सहायक क्रियाएं व इनके प्रयोग से वाक्‍य सॉंचों का निर्माण।
1.8    वाक्‍य सॉंचे एवं अभिरचना: विशेष रुप से अंग्रेजी की तुलना:      तुलनात्‍मक अध्‍ययन तथा व्‍यतिरेकी विश्‍लेषण ।
1.9    प्रतिस्‍थापक अभ्‍यासरुप प्रतिस्‍थापक अभ्‍यास,  विस्‍तारक अभ्‍यास,संक्षेपण व रुपांतरण अभ्‍यास व प्रश्‍नोत्‍तर अभ्‍यास ।
1.10  विशिष्‍ट स्‍थान व घटना का विवरण– वाचन व आलेखन दोनों के माध्‍यम से ।

(2)     राजभाषा नीति:

2.1     राजभाषा: ऐतिहासिक पृष्‍ठभूमि– संवैधानिक सभा द्वारा राजभाषा सम्‍बंधी निर्णय ।
2.2     राजभाषा सम्‍बंधी सांविधानिक उपबन्‍ध ।
2.3     राजभाषा विषयक संवैधानिक उपबन्‍ध में की गई व्‍यवस्‍थाओं के कार्यान्‍वयन की स्थिति इस सम्‍बंध में जारी किए गए।